Wednesday, January 10, 2024

सब्र कर पथ के मुसाफिर...सब्र कर...


जब बचपन में सुनते थे कि सब्र करो छोटू, सब्र का फल मीठा होता है। उस समय शायद समझ नहीं आया कि सब्र क्या होता है। धीरे-धीरे जीवन की गाड़ी आगे बढ़ी तो समझ आया चीजें ऐसे ही चलती हैं औऱ धैर्य जीवन का सच्चा साथी है। लगभग एक-डेढ़ महीने से धैर्य, सब्र, इंतज़ार का सच्चा मतलब समझ आ रहा है। अनेकों विवादों में मन फसा, सम्मान-अपमान ना जाने कितनी व्यथाओं में उलझा मन सब्र की गहराइयों को नाप रहा है। जीवन चक्र ही ऐसा है जो परिवर्तन मांगता है। परिवर्तन अटल सत्य है जो सबके जीवन में होना है। कुछ दिन पहले जिंदगी अलग थी, अब अलग है उसके मिजाज भी अलग हैं। किसी को समझाने का प्रयास व्यर्थ है क्योंकि बड़े पंडित जी कहते हैं कि- 'पापोदय में नहीं सहाय का निमित्त बने कोई' जब आपके पाप कर्म का उदय चल रहा हो तो कोई सहायता भी नहीं करता और जब सामने वाले को पता हो, दुनिया को पता हो कि आपका कठिन समय चल रहा है तब तो और भी दुखद है ये राणा जी ने कहा था।


कभी-कभी आप जिसे सबसे ज्यादा चाहते हैं, सोचते हैं कि नहीं ये नहीं बदलेगा। वक्त के साथ वो भी बदल जाते हैं। और उस बदलने से निराश-हताश ना होकर बस नियति का फेरबदल देखना चाहिए। वक्त के साथ महत्त्व भी खत्म होता जाता है। जिसका कभी आप सबकुछ थे उसका सबकुछ कभी कोई और भी हो सकता है। ऐसा नहीं है कि आपको बुरा नहीं लगेगा, बहुत बुरा लगेगा, ऐसा लगेगा कि जैसे वो आपको छोड़ कर जा रहा हो लेकिन सब्र......इंतज़ार ये शब्द सिर्फ किताब में ना रह जाएं बल्कि असल जीवन में हम उतारे यही है जिंदगी का फलसफा, तजुर्बा......


मेरा ऐसा मानना है कि दुनिया खूबियों से नहीं कमियों से चल रही है। कोई मेरी खूबियां भले ना जाने लेकिन कमियां बिना जाने बता सकते हैं। चाहे चेहरे से, चाहे बात करने से या फिर कई और तरह से सब संभव है। अब सवाल है कि और कितना? कितना सब्र लगेगा। ये सवाल जब मैं सोचता हूँ तो एक मेरे भैया जो CA कर रहे हैं और ना जाने कितने अटेम्प्ट दे चुके हैं उनकी सकारात्मक बातें याद आती हैं। फिर दशरथ मांझी का वो डायलॉग जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं। फिलहाल सत्य यही है कि धैर्य चाहिए भगवान राम जैसा जो सिर्फ एक आदेश के बाद वर्षों वन में रहकर अपने धैर्य का परीक्षण करते रहे।


बड़ी कश्मकश है जिंदगी में.....लेकिन सच यही है कि सब्र करना चाहिए। कोई समझे आपको या नहीं लेकिन सब्र करना चाहिए और ये अपेक्षा भी नहीं रखना चाहिए कि कभी आप समझे जाओगे। सबके जीवन में सबेरे नहीं हैं तो क्या हुआ बस अंधेरे में ही दीपक जला लेना चाहिए क्योंकि हर रात की सुबह है इसलिये आज नहीं तो कल....कल नहीं तो परसों......अनंत तक....कुछ दिन पहले पढा भी था कि बुरे वक्त जरा अदब से पेश आ क्योंकि वक्त नहीं लगता, वक्त बदलने में....

No comments:

कलम क्या-क्या लिखाए

ई-कल्पना पत्रिका में कैसे छपवाएं अपनी कहानियां : मानदेय के साथ प्रोत्साहन भी, पूरी प्रक्रिया जानिए....लिखो और कमाओ

  ई-कल्पना पत्रिका युवा लेखकों के लिए बेहतरीन मंच है। यह पत्रिका ना सिर्फ लेखक की रचना प्रकाशित करती है बल्कि उचित मानदेय भी देती है। जो कलम...