मुझसे अगर कोई पूछे कि तुम्हारी नज़र में सबसे ज्यादा अमीर कौन है तो मैं बिना रुके, बिना हिचकिचाएं जवाब दे सकता हूँ। मेरा जवाब होगा 'जिसका आत्म सम्मान जिंदा है वो सबसे ज्यादा अमीर है'।
मैंने ऐसे बहुत सारे उम्रदराज लोग देखें हैं जिनके अंदर खुद्दारी इतनी की मर जायेंगे लेकिन किसी के आगे मांगने नहीं जाएंगे। वो अपनी मेहनत और संघर्ष से कमाई चीजों से खुश हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उन चीजों में वो गर्व महसूस करते हैं। एक अपनापन लगता है कि ये चीजें मेरी हैं इनपर कोई और अधिपत्य नहीं जमा सकता ना कह सकता है कि शर्म करो ये तुम्हारी चीजें थोड़ी हैं।
नोकरी करने वाले आदमी को ऐसा समझा जाता है कि उसका आत्म सम्मान कहाँ हैं। दूसरे के यहां, दूसरे के लिए काम कर रहा है इससे सेल्फ रेस्पेक्ट तो मर गई न? आत्म सम्मान तो खुद का धंधा करने में हैं। बिल्कुल बात सत्य है लेकिन क्या नोकरी करने वाला इंसान किसी से भीख मांग रहा है? सुबह से शाम किसी कंपनी को अपना वक्त, सारे एफर्ट्स, जो सीखा उसने सब झोंक देता है तो उसकी मेहनत की सैलरी मिलनें में आत्म सम्मान कहाँ खत्म हो गया? अगर यही एम्प्लॉय एक दिन काम पर ना आये तो बड़ी से बड़ी कंपनियों के L लग जाएंगे। वो जो काम करते हैं उनको उस काम का दाम मिलता है। स्वाभिमान खत्म करना तो तब है जब आप गधों की तरह काम करते रहो और बॉस फिर भी आपको गाली दे और आप गाली सुनो, सुनते रहो, अपमान सहते रहो दिक्कत वहां है। मुझे ऐसे बॉस मिले नहीं है जिन्होंने मेरे साथ ऐसा किया हो लेकिन अगर ऐसा है तो बोलो, ऐसे बोलो की सुनने वाले का जीवन धन्य हो जाये। सुनते वो हैं जिन्हें खुद पर भरोसा नहीं कि मैं जो काम कर रहा हूँ वो मुझे आता भी है या नहीं। अगर काम आता है तो फिर ऐसा सुनाओ कि सुनने वाला दोबारा आपसे बोले ही ना उसे समझ आ जाये कि काम अपनी जगह है लेकिन किसी के आत्म सम्मान से ऊपर जाओगे तो वहीं पेल दिए जाओगे और चूकि ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है।
मैं आत्म सम्मान के मामले में अपने दादा को बहुत महान मानता हूं। गरीबी देखी, गरीबी में रहे, बच्चों को पाला, उनको काम करने योग्य बनाया, हमें पाला, लेकिन आजतक मैंने उनको किसी का एहसान लेते नहीं देखा।शायद वही गुण मेरे पापा में थे और वही मुझमें। अगर किसी के पैसे लिए तो वापिस किये भले ही वो 5 रुपये हों या 10 रुपये। आज भी अगर उन्होंने कुछ बाजार से मुझसे सामान मंगवाया तो जैसे ही मैं सामान लाया वो मुझे उस सामान के पैसे तुरंत अपने जेब से निकाल कर देते हैं।
कभी-कभी सोचता हूँ कि जो सिंग्नल, रेलवे प्लेटफॉर्म तमाम जगहों पर भीख मांगते हैं उन्होंने अपने आत्म सम्मान को कितने पहले मार दिया होगा।
फिहलाल सत्य यही है कि पैसा वो वबासीर है, जो आदमी के मरने तक ठीक नहीं होगा। जरूरी है आत्म सम्मान बरकरार रहे। पैसा आएगा-जाएगा लेकिन ये गया जिस दिन उस दिन सब खत्म। और कोई आपके आत्म सम्मान की इज्जत करता है तो उससे अच्छा इंसान आपकी जिंदगी में नहीं है। और जिन्हें सबसे पहले अपना आत्म सम्मान जरूरी लगता है मैं उनकी इज्जत करता हूँ।
1 comment:
बहुत बहुत खूब लेखक महोदय! पूर्णत: सहमत हूं आपसे।👌
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