Saturday, January 27, 2024

ई-कल्पना पत्रिका में कैसे छपवाएं अपनी कहानियां : मानदेय के साथ प्रोत्साहन भी, पूरी प्रक्रिया जानिए....लिखो और कमाओ

 


ई-कल्पना पत्रिका युवा लेखकों के लिए बेहतरीन मंच है। यह पत्रिका ना सिर्फ लेखक की रचना प्रकाशित करती है बल्कि उचित मानदेय भी देती है। जो कलमकार लिखने में रुचि रखते हैं और कहानियों को पन्ने पर उतारना जानते हैं उनके लिए यह पत्रिका प्रोत्साहन प्रदान करती है और शानदार मौका देती है। अगर आप भी कहानी लिखते हैं तो ई-कल्पना को अपनी कहानी लिख भेजिए। प्रक्रिया मैं आपको बताता हूं।

सबसे पहले अपनी पूरी कहानी को वर्ड फाइल में समेटकर ई-कल्पना के ऑफिशियल ईमेल आईडी पर 'ई-कल्पना में प्रकाशनार्थ कहानी' विषय के साथ वर्ड फाइल अपलोड कर ekalpnasubmit@gmail.com पर मेल कर दीजिए। बहरहाल कुछ ही दिनों (लगभग एक हफ्ता) में पत्रिका की तरफ से आपको मेल आएगा। मेल मे लिखा होगा कि आपकी कहानी पढ़ी जा रही है। आपकी रचना की स्वीकृति-अस्वीकृति के निर्णय पर पहुंचने पर जल्द आपसे  संपर्क किया जायेगा। और अगर आपके द्वारा भेजी गई कहानी कहीं और प्रकाशित हो रही है तो तुरंत अवगत कराएं।

कुछ दिनों बाद ई-कल्पना की तरफ से कहानी की स्वीकृति-अस्वीकृति को लेकर मेल आएगा। अगर आपकी कहानी अस्वीकृत हुई हो तो फिर आगे कोई बात ही नहीं लेकिन अगर आपकी कहानी स्वीकृत हुई होगी तो पत्रिका का अगला अंक जब भी प्रकाशित होगा आपको बताया जाएगा। उसके बाद आपसे फोटो और आपका परिचय मांगा जाएगा। (आप जब कहानी भेजें तब भी अपना परिचय और फ़ोटो भेज सकते हैं)

ध्यान देने योग्य बात ये है कि इस मेल में एक नोट भी लिखा रहेगा जिसे आप ध्यान से पढ़िए। नोट होगा - अपनी कहानी के लिये आपको  प्रकाशन के समय  ₹2000 का मानदेय प्राप्त होगा. हम आपसे उम्मीद करते हैं कि इस शुभ समाचार को आप मित्रों में व सोशल मीडिया में शेयर करेंगे.  यदि आपको लगता है कि आप ऐसा नहीं कर सकते तो हमें तुरंत बताएं. साथ में, यदि इस दौरान आपकी यह कहानी कहीं और प्रकाशित हो गई हो, या फिर पूर्व प्रकाशित है, तो भी हमें ज़रूर सूचित करें, और अपनी कोई और अप्रकाशित कहानी भेजें. उसे हम प्रकाशन विचारार्थ सखुशी पढ़ेंगे.
यदि आप सेशल मीडिया में हैं तो कृपया ई-कल्पना को फ्रैंड-रिक्वैस्ट भेजें या फिर अपना पता दें और हम आपसे फ्रैंड रिक्वैस्ट करेंगे.

फिर आपके पास अगल मेल आएगा जिसमें पत्रिका के नियम और शर्ते बताई जाएंगी जिन्हें आप बहुत ध्यान से पढ़िए और समझिए।

1. यदि आपकी कहानी प्रकाशन तिथि से पहले किसी अन्य पत्रिका में प्रकाशित होती है तो कृपया हमें ज़रूर और तुरंत इत्तिला करें. 
2. यदि आप सोशल मीडिया में शामिल हैं, तो अपनी प्रकाशित कहानी मित्रों में ज़रूर शेयर करें. हमने देखा है कई लेखक काफी सक्रिय होने के बावजूद हमारी पत्रिका में प्रकाशित अपनी कहानी अपने मित्रों में साझा नहीं करते हैं. इससे उनके उत्साह का अभाव झलकता है, साथ में हम ये भी समझते हैं कि ई-कल्पना द्वारा सम्मानित लेखक ई-कल्पना को सपोर्ट करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखता. 
उपर्युक्त दशाओं के उल्लंघन का (यानि, पूर्वप्रकाशित होना, या सोशल मीडिया में सक्रिय होने के बावजूद कहानी को शेयर न करना), इन दोनों का असर बिलकुल मानदेय के वितरण में भी होगा. 
3. यदि आपने अब तक अपनी बायो व फोटो नहीं भेजी है, तो कृपया भेजेंअपनी कहानी हमें भेजने के लिये धन्यवाद।

और फिर प्रक्रिया के अनुसार ई -कल्पना की वेबसाइट ऑफिसियल वेबसाइट https://www.ekalpana.net/ पर सबसे पहले आपकी कहानी प्रकाशित होगी। उसके बाद जब आपकी कहानी पत्रिका में प्रकाशित होगी तब आपके पास इस तरह का में आएगा।

प्रिय लेखक, नमस्कार ! आपकी कहानी पाँच कहानियाँ के __वें संकलन में प्रकाशित हो चुकी है. कहानी के लिये आपको ₹ 2000 की राशि मानदेय के तौर पर दी जाएगी, जो आपके अकाऊंट में ई-कल्पना के इंडस-इंड के गुड़गांव ब्रांच से वायर ट्रांस्फर की जाएगी. 
कृपया अपने बैंक डीटेल (निम्नलिखित) भेजें.

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Bank Name:
Account number:       
Bank IFSC:

हमारी दिली कोशिश है कि ज़्यादा लोग अच्छी कहानियाँ पढ़ने की और लिखने की आदत डालें, प्रकाशन के लिये भी भेजें. इसलिये यदि आप अपनी इस प्रकाशित कहानी को मित्रों में व सोशल मीडिया में शेयर करें तो हम आपके आभारी होंगे.  आपकी कहानी ई-कल्पना ब्लॉग में सदा प्रकाशित रहेगी, इसे आप या आपके मित्र निःशुल्क पढ़ सकते हैं. 

संकलन की प्रत्येक प्रति रु 95 में पत्रिका के साइट (इस लिंक) पर उपलब्ध है.  40वाँ संकलन खरीदने का लिंक यहाँ है. आगे - कहानियाँ लिखते रहें,  अपनी नई कहानियाँ भेजते रहें. हमें आपकी कहानियों का इंतज़ार रहेगा. सधन्यवाद

मुक्ता सिंह-ज़ौक्की
सम्पादक, ई-कल्पना

यही ई-कल्पना पत्रिका में अपनी कहानियां भेजने की पूरी प्रक्रिया है। अगर आप कहानियां लिखते हैं तो देर मत कीजिये पत्रिका ने अगले अंक के लिए कहानियां पढ़ना शुरू कर दिया है। विशेष ध्यान दें : ई-कल्पना अनगिनत कहानियों में बेहतरीन कहानियां छापती है इसलिए लेखन पर जोर दें और इसके लिए पत्रिका ने अपनी गाइडलाइन वेबसाइट दी है जो मैं यहां शेयर कर रहा हूँ।

अपनी कहानियाँ भेजिये ...
आपकी कहानी - ● पूर्व प्रकाशित न हो
● एक अच्छी कहानी का स्वरूप बनाए रखें, यानी कि भाषा, विडम्बना, कथानक, इत्यादि न भूलें ... भाषा अच्छी ही न हो, वर्तनी व व्याकरण का भी ध्यान दें
● यूनिकोड फांट में हो. (नोट – कृति देव यूनीकोड फांट नहीं है. कई लेखक हमें कृति देव में शायद यह सोचकर भेजते हैं कि इसे बस कनवर्ट ही तो करना है, कर लेंगे ये लोग. जी हाँ, यही करना पड़ता है हम लोगों को, क्योंकि हम आपकी कहानियाँ पढ़ने को अधीर हो रहे होते हैं. मगर यह बात भी सही है कि जब पढ़ने को बहुत सारी कहानियाँ होती हैं, तो वो कहानियाँ जो कृति देव में टंकित की जाती हैं, कई बार रह जाती हैं)
यदि उपर्युक्त सभी बातों में आपकी कहानी खरी उतरती है, तो हमारी सम्पादकीय टीम उसे बहुत प्रेम से पढ़ेगी।


प्रकाशनाभिलाशी लेखकों के लिये सूचना

1. यदि आपको कहानी प्राप्ति पत्र मिल चुका है, लेकिन स्वीकृति/अस्वीकृति निर्णय पत्र नहीं मिला है, तो कृपया इंतज़ार करें. कहानियाँ लगातार पढ़ी जा रही हैं.
2. मानदेय के विषय में - लेखक के काम का मूल्य होता है, इसलिये हर स्वीकृत कहानी को हम मानदेय देते हैं. हर स्वीकृति पत्र में हम लेखक से प्रकाशन की सूचना अपने मित्रों में सोशल मीडिया के ज़रिये प्रसारित करने की विनती भी करते हैं. इससे, पहले तो लेखक का उत्साह झलकता है, साथ में पत्रिका का भी प्रसार होता है. पत्रिकाओं को पाठकों की ज़रूरत है, यह एक लॉजिकल सच है. अकसर हमने देखा है कि लेखक सोशल मीडिया में सक्रिय होने के बावजूद ई-कल्पना में प्रकाशित अपनी कहानी साझा नहीं करते हैं. इसे हम केवल एक तरह से देखते हैं - कि लेखक ई-कल्पना को बॉयकौट कर रहे हैं. सामान्यतः हम उम्मीद करते हैं कि प्रकाशन के एक हफ्ते के दौरान लेखक कहानी को साझा कर अपना गर्व भी साझा करेंगे. इसलिये हमारे सम्पादक मंडल ने तय किया है कि यदि आप सोशल मीडिया में सक्रिय हैं और ई-कल्पना में प्रकाशित अपनी कहानी को साझा नहीं कर रहे हैं,  तो यह आपकी मर्ज़ी है, लेकिन कहानी के मानदेय के वितरण में इसका असर पड़ सकता है.

पत्रिका को लेकर मेरा अनुभव

यह पूरी प्रक्रिया ही मेरा अनुभव है। इसी प्रक्रिया के साथ ही मेरी कहानी भी प्रकाशित हुई।  ई-कल्पना पत्रिका का मेल गणतंत्र दिवस पर प्राप्त हुआ (स्क्रीन शॉट अटैच कर रहा हूँ)। यह पहली बार है जब ई-कल्पना से मुझे मानदेय मिल रहा है। ऐसी पत्रिकाओं का खूब प्रचार और प्रसार होना चाहिए। नए लेखकों के लिए यह अच्छा प्लेटफॉर्म है। ई-कल्पना पत्रिका में पिछले दिनों मेरी कहानी 'लॉकडाउन कोटा' प्रकाशित हुई थी। 

अगर आप कहानियां लिखते हैं तो अपनी रचनाओं को ई-कल्पना को भेज सकते हैं। आपकी रचनाएं यहां प्रकाशित होंगी तो आपको पारिश्रमिक भी मिलेगा और रचना पांच कहानियों के संकलनन में ई-मैग्जीन के तौर पर भी प्रकाशित होगी। जिसमें आप अन्य लेखकों की कहानियां भी पढ़ सकते हैं।



ई-कल्पना की कोविड कहानी सीरीज़ में प्रकाशित सोमिल जैन सोमू की लिखी कहानी "लॉकडाउन कोटा"*

https://www.ekalpana.net/post/ekalpanacovidstorysomiljainsomuhttps://www.ekalpana.net/post/ekalpanacovidstorysomiljainsomu

Blog कैसे बनायें? Step by Step in Hindi



Monday, January 15, 2024

गुरूर नहीं बस मिजाज में खुद्दारी बहुत है.....

मुझसे अगर कोई पूछे कि तुम्हारी नज़र में सबसे ज्यादा अमीर कौन है तो मैं बिना रुके, बिना हिचकिचाएं जवाब दे सकता हूँ। मेरा जवाब होगा 'जिसका आत्म सम्मान जिंदा है वो सबसे ज्यादा अमीर है'।

मैंने ऐसे बहुत सारे उम्रदराज लोग देखें हैं जिनके अंदर खुद्दारी इतनी की मर जायेंगे लेकिन किसी के आगे मांगने नहीं जाएंगे। वो अपनी मेहनत और संघर्ष से कमाई चीजों से खुश हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उन चीजों में वो गर्व महसूस करते हैं। एक अपनापन लगता है कि ये चीजें मेरी हैं इनपर कोई और अधिपत्य नहीं जमा सकता ना कह सकता है कि शर्म करो ये तुम्हारी चीजें थोड़ी हैं।

नोकरी करने वाले आदमी को ऐसा समझा जाता है कि उसका आत्म सम्मान कहाँ हैं। दूसरे के यहां, दूसरे के लिए काम कर रहा है इससे सेल्फ रेस्पेक्ट तो मर गई न? आत्म सम्मान तो खुद का धंधा करने में हैं। बिल्कुल बात सत्य है लेकिन क्या नोकरी करने वाला इंसान किसी से भीख मांग रहा है? सुबह से शाम किसी कंपनी को अपना वक्त, सारे एफर्ट्स, जो सीखा उसने सब झोंक देता है तो उसकी मेहनत की सैलरी मिलनें में आत्म सम्मान कहाँ खत्म हो गया? अगर यही एम्प्लॉय एक दिन काम पर ना आये तो बड़ी से बड़ी कंपनियों के L लग जाएंगे। वो जो काम करते हैं उनको उस काम का दाम मिलता है। स्वाभिमान खत्म करना तो तब है जब आप गधों की तरह काम करते रहो और बॉस फिर भी आपको गाली दे और आप गाली सुनो, सुनते रहो, अपमान सहते रहो दिक्कत वहां है। मुझे ऐसे बॉस मिले नहीं है जिन्होंने मेरे साथ ऐसा किया हो लेकिन अगर ऐसा है तो बोलो, ऐसे बोलो की सुनने वाले का जीवन धन्य हो जाये। सुनते वो हैं जिन्हें खुद पर भरोसा नहीं कि मैं जो काम कर रहा हूँ वो मुझे आता भी है या नहीं। अगर काम आता है तो फिर ऐसा सुनाओ कि सुनने वाला दोबारा आपसे बोले ही ना उसे समझ आ जाये कि काम अपनी जगह है लेकिन किसी के आत्म सम्मान से ऊपर जाओगे तो वहीं पेल दिए जाओगे और चूकि ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है।

मैं आत्म सम्मान के मामले में अपने दादा को बहुत महान मानता हूं। गरीबी देखी, गरीबी में रहे, बच्चों को पाला, उनको काम करने योग्य बनाया, हमें पाला, लेकिन आजतक मैंने उनको किसी का एहसान लेते नहीं देखा।शायद वही गुण मेरे पापा में थे और वही मुझमें। अगर किसी के पैसे लिए तो वापिस किये भले ही वो 5 रुपये हों या 10 रुपये। आज भी अगर उन्होंने कुछ बाजार से मुझसे सामान मंगवाया तो जैसे ही मैं सामान लाया वो मुझे उस सामान के पैसे तुरंत अपने जेब से निकाल कर देते हैं।
कभी-कभी सोचता हूँ कि जो सिंग्नल, रेलवे प्लेटफॉर्म तमाम जगहों पर भीख मांगते हैं उन्होंने अपने आत्म सम्मान को कितने पहले मार दिया होगा।

फिहलाल सत्य यही है कि पैसा वो वबासीर है, जो आदमी के मरने तक ठीक नहीं होगा। जरूरी है आत्म सम्मान बरकरार रहे। पैसा आएगा-जाएगा लेकिन ये गया जिस दिन उस दिन सब खत्म। और कोई आपके आत्म सम्मान की इज्जत करता है तो उससे अच्छा इंसान आपकी जिंदगी में नहीं है। और जिन्हें सबसे पहले अपना आत्म सम्मान जरूरी लगता है मैं उनकी इज्जत करता हूँ।


Wednesday, January 10, 2024

सब्र कर पथ के मुसाफिर...सब्र कर...


जब बचपन में सुनते थे कि सब्र करो छोटू, सब्र का फल मीठा होता है। उस समय शायद समझ नहीं आया कि सब्र क्या होता है। धीरे-धीरे जीवन की गाड़ी आगे बढ़ी तो समझ आया चीजें ऐसे ही चलती हैं औऱ धैर्य जीवन का सच्चा साथी है। लगभग एक-डेढ़ महीने से धैर्य, सब्र, इंतज़ार का सच्चा मतलब समझ आ रहा है। अनेकों विवादों में मन फसा, सम्मान-अपमान ना जाने कितनी व्यथाओं में उलझा मन सब्र की गहराइयों को नाप रहा है। जीवन चक्र ही ऐसा है जो परिवर्तन मांगता है। परिवर्तन अटल सत्य है जो सबके जीवन में होना है। कुछ दिन पहले जिंदगी अलग थी, अब अलग है उसके मिजाज भी अलग हैं। किसी को समझाने का प्रयास व्यर्थ है क्योंकि बड़े पंडित जी कहते हैं कि- 'पापोदय में नहीं सहाय का निमित्त बने कोई' जब आपके पाप कर्म का उदय चल रहा हो तो कोई सहायता भी नहीं करता और जब सामने वाले को पता हो, दुनिया को पता हो कि आपका कठिन समय चल रहा है तब तो और भी दुखद है ये राणा जी ने कहा था।


कभी-कभी आप जिसे सबसे ज्यादा चाहते हैं, सोचते हैं कि नहीं ये नहीं बदलेगा। वक्त के साथ वो भी बदल जाते हैं। और उस बदलने से निराश-हताश ना होकर बस नियति का फेरबदल देखना चाहिए। वक्त के साथ महत्त्व भी खत्म होता जाता है। जिसका कभी आप सबकुछ थे उसका सबकुछ कभी कोई और भी हो सकता है। ऐसा नहीं है कि आपको बुरा नहीं लगेगा, बहुत बुरा लगेगा, ऐसा लगेगा कि जैसे वो आपको छोड़ कर जा रहा हो लेकिन सब्र......इंतज़ार ये शब्द सिर्फ किताब में ना रह जाएं बल्कि असल जीवन में हम उतारे यही है जिंदगी का फलसफा, तजुर्बा......


मेरा ऐसा मानना है कि दुनिया खूबियों से नहीं कमियों से चल रही है। कोई मेरी खूबियां भले ना जाने लेकिन कमियां बिना जाने बता सकते हैं। चाहे चेहरे से, चाहे बात करने से या फिर कई और तरह से सब संभव है। अब सवाल है कि और कितना? कितना सब्र लगेगा। ये सवाल जब मैं सोचता हूँ तो एक मेरे भैया जो CA कर रहे हैं और ना जाने कितने अटेम्प्ट दे चुके हैं उनकी सकारात्मक बातें याद आती हैं। फिर दशरथ मांझी का वो डायलॉग जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं। फिलहाल सत्य यही है कि धैर्य चाहिए भगवान राम जैसा जो सिर्फ एक आदेश के बाद वर्षों वन में रहकर अपने धैर्य का परीक्षण करते रहे।


बड़ी कश्मकश है जिंदगी में.....लेकिन सच यही है कि सब्र करना चाहिए। कोई समझे आपको या नहीं लेकिन सब्र करना चाहिए और ये अपेक्षा भी नहीं रखना चाहिए कि कभी आप समझे जाओगे। सबके जीवन में सबेरे नहीं हैं तो क्या हुआ बस अंधेरे में ही दीपक जला लेना चाहिए क्योंकि हर रात की सुबह है इसलिये आज नहीं तो कल....कल नहीं तो परसों......अनंत तक....कुछ दिन पहले पढा भी था कि बुरे वक्त जरा अदब से पेश आ क्योंकि वक्त नहीं लगता, वक्त बदलने में....

Thursday, January 4, 2024

खामोश रातें, उदास आंखे क्या कहती हैं.....


उतार-चढ़ाव जिंदगी का हिस्सा हैं उन्हें स्वीकारना ही समझदारी है। इन शब्दों के मायने शब्दशः अब समझ में आए हैं। फिलहाल ख्वाबों का खंजर सीने को चीर रहा है। कुछ चीजें बदल रही हैं बदलेंगी लेकिन बहुत कुछ बदलना है पर सब्र का बांध टूट रहा है। कितनी किसकी इज्जत करनी पड़े, अपमान कब तक और कितना सहा जाए। विचारों का अंतर्द्वंद्व अजीब सी मिसमिसाहट भरे आंखों ने नीचे और भी गड्ढे कर रहा है।

कुछ चीजें कभी बदलती नहीं हैं जैसे कि लोगों की आपके प्रति सोच....उन्हें लगता है कि तुम वही  पहले जैसे हों, आप विरोध करो तो बेइज्जत होते हैं और उस समय आपको पता चलता है कि कोई आपके साथ नहीं हैं बस अब तमाशबीन बनकर आपका तमाशा बनते देख रहे हैं। बस वो समय होता है जब आपको सब्र सीखना होता है क्योंकि कभी- कभी जवाब मुंह से नहीं दिए जाते है, आपकी मेहनत जवाब देती है वो भी बहुत जोर से......

ये चीजें इसलिए समझ आईं क्योंकि उस वक्त मैंने सब्र किया, गुस्से को कंट्रोल किया और पूरा जोर आंसुओं को रोकने में लगाया  तब जाकर समझ आया कि दार्शनिक बातें कहने-सुनने में कितनी अच्छी लगती हैं लेकिन अपनाने में, अपने कैरेक्टर में लाने में पूरा जीवन लग जाता है। शायद इसलिए जीवन जंग है किसी और से नहीं बल्कि खुद से...बहुत दिनों पहले दो लाइन पढ़ी थीं जो सब दुख दर्द हर लेती हैं...लिखा है कि 'जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना, उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म हैं.....' 

कलम क्या-क्या लिखाए

ई-कल्पना पत्रिका में कैसे छपवाएं अपनी कहानियां : मानदेय के साथ प्रोत्साहन भी, पूरी प्रक्रिया जानिए....लिखो और कमाओ

  ई-कल्पना पत्रिका युवा लेखकों के लिए बेहतरीन मंच है। यह पत्रिका ना सिर्फ लेखक की रचना प्रकाशित करती है बल्कि उचित मानदेय भी देती है। जो कलम...