वो मानते रहे हमें कि हम वेबफा निकले।
वो समझने लगे हमें कि हम दगा कर बेठे।
मजबूरियां हालात न जानकर उनने....
कह दिया की तुम धोखेबाज़ निकले।
हमने उनसे कहा-----
बातों ही बातों में वो बात बढ गई।
हमें तुम्हे जो न मुनासिब वो मुलाकात बढ गई।
मगर अफ़सोस नहीं मुझ बेजुबाँ को।
बस दर्द से भरी एक और रात बड़ गई।
सोचा कभी हमें वो नज़र आयेंगे।
मगर.......
अब उनकी नज़रे बदल गईं और उन नज़रों के नज़ारे बदल गये।
सोचा छोड़ो यार....भुलाना सीख जाओ...
हम भी अब गिरकर,उठकर बढ चुके हैं।
तेरी मोहोब्बत से रुख्सत हो कुछ बन चुके है।
माना कि आपके काबिल नहीं हुए हम।
मगर किसी की नज़रों में हम अब जम चुकें हैं।
ये प्यार नसीहत भी दे गया और तजुर्बा भी।
मोहोब्बत छोड़ दी हमने मगर बफा अब भी करते हैं।
कुबूल की अपनी गलती और माफ़ किया तुम्हें।
क्योंकि तुझसे बिछड़ के हम भी शायर हो गये।
बस दुआ है जंहा भी रहें आप खुश रहें
हमारा क्या है हम तो मुसाफिर हैं राह के।
तेरे मिलने से पहले सोमिल थे।
और आजकल सोमू हो गये।
सोमिल जैन "सोमू"
(2016)
😊😊😊😊😊😊
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