Friday, December 23, 2022

चोट्टा बन गया......

 कहते हैं.....


लहरों से डरकर नोका पार नहीं होती ।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

          "कवि सोहन लाल द्विवेदी जी"

ये कुछ पँक्तियों को लिखने का उद्देश्य ये है कि कुछ मूर्खों (क्षमा माँगते हुए) के गलत प्रचार की वजह से इन लाइनों को सही क्रेडिट नहीं मिल पाया है। यही वो पंक्तियां हैं जिनसे हमारा आज तक कटता आया है और शायद आज भी कट रहा है। ये कविता यूट्यूब पर  सर्च करो तो एक ही आंसर आएगा "लहरों से डरकर कविता by हरिवंशराय बच्चन"

तथाकथित प्रमाणों से ये माना गया है कि हमारे देश के महानायक अमिताभ बच्चन जी ने नेशनल टी वी पर ये कविता पढ़ी। जब सदी के  महानायक ये कहेंगे तो भरोसा तो करना पड़ेगा। अमित अंकल ने जब ये कविता नेशनल टीवी पर कही लेकिन बाद में उन्होंने माफी भी माँगी कि ये कविता "बाबू जी" की नहीं है। ये वाली बात किसी ने नहीं सुनी और बस
धूआँधार प्रचार "बाबू जी" के नाम से इस कविता का हुआ।
अभी कुछेक साल पहले  कुमार विश्वास सर ने "बाबूजी" की एक कविता रिकॉर्ड की और अमित सर को लेटर भी भेजा कि ऐसा हम कर रहे हैं। उनके भाई शमिताभ सर को भी ये लेटर गया और शमिताभ सर ने हिंदी को बचाए रखने के लिए "हां" भी कर दी। मगर जब विश्वास सर ने अपने यूट्यूब चैनल "तर्पण" पर पोस्ट की तो अमित सर ने सीधा विश्वास जी पर कॉपीराइट क्लेम कर दिया। मतलब महानायक नेशनल टीवी पर "सोहनलाल जी" की कविता "बाबूजी" के नाम से पढ़कर आता है तो कुछ नहीं और माफी भी केबीसी खत्म होने के कई महीनों बाद मांगता है मगर हिंदी को जिंदा रखने के लिए, पुराने कवियों की रचनाएं जीवित रखने के लिए हिन्दीभक्त कुमार सर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ये कविता पोस्ट करते हैं तो कॉपीराइट क्लेम।
फिर मुझे महानायक की एक बात याद आयी जो उनके बारे में कही जाती है "अमिताभ बच्चन व्यक्ति का नाम नहीं, एटीट्यूड का नाम है"    गजब का एटीट्यूड है भैया😊☺☺

हमें समझ मे नहीं आता या हम समझना नहीं चाहते। एक होनहार कवि जिसने सारी उम्र लगा दी इन चंद पंक्तियाँ लिखने में उसका क्रेडिट भी उसे नहीं मिला। हम भी व्हाट्सएप्प या फेसबुक पर फारवर्ड या कविता बिना कवि या लेखक देखें फॉरवर्ड करते जाते हैं। कभी "हरिवंशराय बच्चन साब" की कविता को "मुंशी प्रेमचंद" की कविता है के नाम से प्रचार करते हैं और कभी "सोहनलाल द्विवेदी" जी की कविता को "हरिवंशराय बच्चन" की कविता कहकर कहीँ भी चेंप देते हैं। समझ नहीं आता कि वेवकूफ वो हैं जो ऐसी कविता किसी के नाम से फॉरवर्ड करते हैं या उन्हें वेवकूफ समझते हैं जिन्हें वो फॉरवर्ड के रहे हैं।

सौभाग्य की बात है कि 21 मार्च, 2018 बुधवार, दैनिक भास्कर की विशेषांक मधुरिमा में बहु प्रचलित कविता का सही क्रेडिट देख सकते हैं।




फ़ोटो...


ताज्जुब की बात और इस ब्लॉग को लिखने का उद्देश्य भी यही है कि जब मैंने आदरणीय छोटे दादा(डॉ. हुकुमचंद भरिल) के द्वारा लिखित "महावीर वंदना" जो जगत प्रसिद्ध है। वही "महावीर वंदना" कुछ दिन पूर्व बड़े फ्लेक्स पर सुंदर अक्षरों में सजी देखी।मैं बहुत खुश था। क्योंकि वो ऐसी जगह थी जहाँ हम लोगों का उठना बैठना नहीं होता है( मित्र पक्ष) लेकिन शौक तो तब लगा जब उसी वंदना के खत्म होने के बाद लिखा था।
सम्मानीय "फलाना" महाराज। बहुत सम्माननीय ज्यादा हैं  इसलिए मैंने नाम नहीं लिखा। बाकी इन्हें चोट्टा कहने में मुझे कोई परेशानी नहीं है।आखिर हम भी लिखते हैं।

           अगर आपको कोई भी रचना अच्छी लग रही है तो उस रचना के रचनाकर के नाम से चलाओ। इतना पक्ष व्यामोह रखकर कहां जाओगे चोट्टों!
विचारों की मुफलिसी (गरीबी, दरिद्रता) भी बड़ी तादात में बढ़ रही है। कोई भी सोशल साइट हो हमें हर जगह कॉपी पेस्ट करना है और नीचे बस अपना नाम लिखना है भले ही हमें उस चीज का "घंटा" न आता हो।
उन लोगों का प्रचार करने से जिनके खुद के विचार हैं ही नहीं हमें क्या फायदा मिला जाता है।जिसने इतनी मेहनत करके वो दर्द अपनी कविताओं में डाला है उसके एक मिनिट में अपना बना लेते हैं ये लोग।
कोई भी रचना हो उस रचना का रचनाकर को क्रेडिट देना न भूले। ये उपदेश नहीं नैतिकता है जो हमें "चोट्टा" बनने से बचाएगी।
आश्चर्य की बात तो तब है कि  जो लोग चोट्टा है मगर उन्हें लगता नहीं कि वो चोट्टा हैं। जब मैं उनसे कहता हूँ कि क्रेडिट तो देना चाहिए तो उनका वही जबाब आता है "छोड़ न यार"
"क्या फर्क पड़ता है यार" "जाने दे यार"
ऐसा कहने वालों के लिए हमें उनके  मुंह पर चोट्टा कहने में कोई आपत्ति नहीं है। ये तो चोट्टों के सरदार हैं।बुंदेलखंडी में इन्हें "भड़या" कहते हैं। विचारों की चोरी भी तो एक चोरी है।
हमारे छोटे दादा ने एक बार कॉलेज में भाषण देते हुए "विचारों की दरिद्रता" इसी के संबंध में अपने विचार रखे थे।
मुझे शिकायत है उन तमाम लोगों से जो दूसरों के दर्द को, आंसूओ को अपना नाम लिखकर, उनका नाम लिए बिना प्रचार करते हैं।कॉपी पेस्ट ही तो करना है मगर उन्हें पता नहीं है कि ऐसा करने वाले से लिखने वाले का दर्द भी कॉपी होता है। और अगर तुम वैसा नहीं लिख पर रहे हो तो मत लिखो।अपने नाम से कॉपी पेस्ट क्यो करते हो। विचारशील बनें, चोट्टा नहीं। सबके अपने अपने विचार हैं और विचारों की स्वतंत्रता हमारा अधिकार है तब जब हम कर्तव्य पूरी तरह निभाते हैं।
किसी रचना का क्रेडिट रचनाकर को देने से आप छोटे नहीं हो जाएंगे। आपकी औकात कम नहीं जाएगी बस रचनाकर का आपके प्रति सम्मान बढ़ेगा।
ऐसे लोग वही होते हैं  जिनके खुद के विचार नहीं होते। बस कॉपी पेस्ट ही उनका धर्म होता है।कॉपी करना गलत नहीं है।अगर किसी की रचना आपको अच्छी लगती है।आपकी कहानी कहती है। तो बेशक आप कॉपी के साथ रचनाकर का नाम भी कॉपी करो।आप नाम कट कर देते हैं।अपना नाम लिखकर खुद को महान कहते हैं। बड़े वाले चोट्टा!

हर किताब में एक कॉपीराइट क्लैम का डिस्क्रिप्शन होता है जो किताब के शुरुआत में छपा होता है और किसी का बाप उसे कॉपी नहीं कर सकता।सब चलता है यार , छोड़ न यार, जाने दे यार
ये शब्द जो भी बोलते हैं उनके लिए मेरी तरफ से एक सुंदर गाली "चमार हो का"
हम कहीं बात सुनें थे कि पहले खुद चमरिया करते हो और जब कोई चमार कहे तो चिढ़ते हो। मगर हम उन्हें चोट्टा कहने से कदापि नहीं चूकेंगे।

कॉपी पेस्ट करने वालों को ये भाव तो आते हैं जो वो कॉपी करते हैं मगर उनके पास शब्द नहीं होते लिखने के लिए मगर जब कोई व्यक्ति उनकी फीलिंग्स को लिख देता हैं तो ये कॉपी कर लेते हैं।

कभी कभी तो शक होता है शौक लगता है जब घटिया से घटिया  लोग (क्षमा मागंते हुए) बढ़िया से बढ़िया बात करते हैं फिर बात में पता चलता है कि ये घटिया के साथ साथ चोट्टा भी हैं। ये भी तो एक प्रकार की चोरी है।


प्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यासकार चेतन भगत की बुक "five point someone" की स्टोरी  राजकुमार हिरानी ने कॉपी की थी या चोरी की थी।राजकुमार हिरानी वही जिन्होंने "पीके" और "संजू" का सफल निर्माण किया।और जो "मी टू" केम्पेन के तहत गिरफ्त में धरे गए हैं।
"3 इडियट्स" सबको याद होगी। आज भी हिट ब्लॉबस्टर मूवी है । मगर जब भगत सर को  पता चला कि उनकी स्टोरी उनके  नावेल "five point some one" से ली गई है । उन्होंने सीधा कॉपीराइट क्लेम किया। मगर बाद में राजकुमार हिरानी ने उस मामले को बहुत अच्छे  तरीके से दबाया और  चेतन भगत को अपनी मुँह मांगी रॉयल्टी अच्छी लगी। फिर चेतन भगत सर का कैरियर शुरू हुआ और अब वो जो भी लिखते हैं सारी बुक स्टोल उनकी किताबों से भरी पड़ी हैं।इसलिए कहते हैं कभी भी कॉपी करें तो नाम लिखना न भूले। या फिर copied लिख दें।कहने का मतलब विचारों की भी चोरी होती है कृपया चोरों से सावधान रहिये  कहीं भी मिल सकते हैं।

 रचना के रचनाकर का नाम लिखने में अगर आपका ईगो हर्ट होता है। तो रचना ही मत चोरी करो।अगर रचना ज्यादा अच्छी लग रही है तो रचनाकार का नाम भी लिख दो। ईगो को साइड में रख दो।"चोट्टा" कहलाना पसंद करोगे मगर थोड़ा झुक नहीं सकते।

अपना तो ध्येय वाक्य यही है-

किसी दूसरे के विचारों को  उसकी मेहनत को, रचना को, इबारत को अपना नाम लिखकर जमाने में चलाना....
इसे चतुराई नहीं भड़याई कहते हैं...
   
                                    "सोमू"


मगर आज हम ऐसे टॉपिक पर बात करना चाहते है जो एक प्रकार की चोरी है मगर किसी को लगती  ही नहीं कि ये चोरी है।लोगों विचारों से मुफ़लिस नहीं हैं मगर उन्हें ऐसे काम करने में मजा आता है।

ये ब्लॉग उन लोगों को समर्पित है  मतलब ये ब्लॉग लिखने का उद्देश्य यही है जो लोग चोट्टा तो हैं मगर जिन्हें लगता नहीं कि हम चोट्टा हैं। और ऐसे लोगों को हमारी बुंदेलखंडी बोली में "शुद्ध अखण्ड भड़या" कहते हैं।

दूसरों के विचारों को कॉपी पेस्ट करके अपने नाम से दुनिया भर में चलाना और फ़ोटो एडिट करके उसमें थॉट लिखना और नीचे बड़े अक्षरों में अपना नाम लिखना...."फलाना"

              ताज्जुब की बात ये है कि अगर किसी को समझ में आ गया कि ये थॉट दूसरों के हैं ये बन्दा अपना नाम लिखकर चला रहा है तो तो ठीक है मगर जब किसी को पता ही नहीं है तो वो नेक विचार उसी के नाम से चल जाते हैं और इस प्रकार हम lol बन जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता।😃
ये वो लोग होते हैं जिनके अंदर लिखने की कला तो नहीं है बस उनको दूसरों के विचार कॉपी पेस्ट करके महान बनना होता है

अगर हम सोसल मीडिया पर नज़र डालें तो आज पूरा ही सोसल मीडिया जो ये जानते हैं कि ये गलत चीज है फिर भी चोट्टा बने जा रहे हैं चोटों स भरा पड़ा है
नैतिकता और ईमानदारी की घोर रूप से कमी है।अब साले तुम उसकी मेहनत को अपना कहते हों। उसकी आत्मा नहीं रोती होगी।

अंतिम बात ये है कि "अभी फिलहाल लास्ट ईयर आया आया सांग "जीने भी दे दुनिया हमें इल्ज़ाम न लगा" और "जीने दे न जीने दे न जिंदगी तू जीने दे न" ये दोनों ही गाना न्यू प्लेबैक सिंगर यासीर देसाई ने गाये थे मगर सारा क्रेडिट अरिजीत सिंह को मिला क्योंकि यासीर की आवाज अरिजीत से मिलती-जुलती है। यूट्यूब के महामूर्खों ने इन दोनों गानों को अरिजीत के नाम से चलाया और यासीर तो भूतिया बन गए।

सभी से निवेदन है बेवजह चोट्टा न बनें। रचना पसंद है तो रचनाकर को भी पसंद करना सीखें।पता है मुझे मैं आप लोगों से छोटा हूँ मगर ये बात मुझे छोटी उम्र में भी पता चली इसलिए हम चोट्टा कहलाने से बच गए।

बाकी......चोट्टों से सावधान....😊😊😊😊

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