ये कहानी सोशल मीडिया साईट पर मिले दो होस्टलर ईशान और आरती की है। दोनों एक ही गाँव के हैं लेकिन दोनों ही कई सालों से गाँव से बाहर होस्टल में रहते हैं। इत्तेफ़ाक से दोनों ही कोरोना महामारी के चलते अपने गाँव में फसे हए हैं।
ये मेरी कहानी है मतलब ईशान पंडित की। मैं बनारस हिन्दु युनिवर्सिटी से पढ़ा बनारसी और ईशिका मुरादाबाद से पढ़ी बालिका। उसे गर्ल्स होस्टल का पूरा नोलेज और मुझे लड़को के किय्राकलापों की पूरी ख़बर।
हमारा यूपी का एक छोटा सा गाँव है, जहाँ हम दोनों मोहल्ले वाले कहलाते हैं मगर हम कभी गाँव में मिले ही नहीं। शायद एक दूसरे से बात करने की कभी हिम्मत ही नहीं हुई।
वो क्या है हमने boys होस्टल में सिर्फ लड़के देखे हैं, लड़की के नाम पर सिर्फ "लड़की" शब्द सुना था इसलिए लड़की से कैसे बात करते हैं हमें घंटा नहीं पता था। हम अपनी होस्टल के "गौ" आदमी थे और हमारे पास स्त्रीलिंग में कंघी भी नहीं थी, हम हमेशा कंघा रखते थे।
कोरोना आने से पहले हम बनारस में थे। यहाँ "हम" का मतलब "मैं" है। वो क्या है हम यूपी वाले हैं तो मैं को हम बोलने की हमारी आदत है इसलिए कन्फ्यूज़ मत होना।
मार्च में हम बनारस से 15 दिन की छुट्टी पर घर आये थे मगर लाकडाउन के चलते घर में ही कई महीनो गुज़र गये।
वक्त भयानक चल रहा था।न्यूज़ चैनल पर दुनिया के हालात देखने से भी डर लगने लगा था। किताबें और मोबाइल ही इस वक्त अपने सच्चे साथी थे। इन्होंने भी कोरोना वारियर की जिम्मेदारी उठा रखी थी। सपनों और उम्मीद की तो लगी पड़ी थी।
मोबाइल पर मनोरंजन का सबसे अच्छा साधन बन गया था सोशल मीडिया और वेब सीरीज़। बस यहीं पर अत्यधिक टाइम पास करना हमारी जिदंगी बन गया था। कभी-कभी मन न लगे तो अपनी क्रश को इंस्टाग्राम पर स्टाक भी कर लेते थे। मगर हाथ कुछ नहीं आता था क्योंकि उसका इंस्टाग्राम हैंडल प्राइवेट था। हम जानते थे कि हममें उससे बात करने की हिम्मत नहीं है उससे मतलब आरती शुक्ला से। बस इंस्टाग्राम हैंडल को ही टुकुर-टुकुर देख लेते थे।
घर में पड़े-पड़े 5 महीने बीत चुके थे। खुद की सेल्फ रेस्पेक्ट तो कुछ बची नहीं थी बस खाने को मिल रहा था यही बहुत था।
हमारा गाँव बहुत छोटा है। और छोटे गाँवों की यही दिक्कत है कि वहाँ बातें बहुत जल्दी फैलती हैं। सही हों या गलत हों, बातें कैसी भी हों बहुत जल्दी बस फैल जाती हैं इसलिए आरती शुक्ला से बात करने में हमारी फटती थी।
एक दिन मैंने हिम्मत करके इंस्टाग्राम पर उसे फोलो रिक्वेस्ट भेज दी। एक दिन गुज़र गया फिर मैंने सोचा लड़की है थोड़ा टाइम तो लेगी और यहाँ तो आरती शुक्ला हैं तो तो टाइम लगना ही है।
खैर मैंने तो रिक्वेस्ट भेज दी और एक्सेप्ट होने का इंतज़ार करने लगा।सोचने लगा कि उसने रिक्वेस्ट देखी भी होगी या नहीं?
हम ये सोच ही रहा था तभी इंस्टा का नोटिफिकेसन चमका उसने हमारी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली थी। फिर अपन इतने चौड़ में जैसे उसने शादी के लिए हाँ कर दी हो इतनी खुशी क्या बताऊँ।
उसने रिक्वेस्ट तो एक्सेप्ट कर ली मगर हमको फॉलो बैक नहीं किया इस बात का अलग दुख हो रहा था। मेरा ईगो हर्ट हो गया इसलिए मैंने अपने ईगो का आदर करते हुए उसे फिर अनफॉलो कर दिया।
एक तरफ वो क्रश भी है मेरी और दूसरी तरफ अपना आत्म सम्मान भी अपन को जरूरी था, ऐसे कैसे चलेगा भैया?
मै इस बात को भूलने में लगा था मगर वो फिर मुझे रोज़ याद आने लगी। एक दिन हमारे मंदिर में कथा का आयोजन होना था और हमारे घर एक दूसरे से ज्यादा दूर नहीं थे। मगर सामने से बात करने में डर लगता था इसलिए मैंने इंस्टा पर उसे फिर उसे अपने आत्म सम्मान को फ्लश करके मेसेज कर दिया-
"तुम मंदिर की कथा आयोजन में आ रही हो न"
कहानी जारी रहेगी !
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