Wednesday, July 26, 2023

वो जो इस सफ़र में जरुरी हैं

 

                                      परिंदे डरने लगें, अगर परवाज़  से।

फिर उन्हें कौन रूबरू कराएगा आज़ से।

 

“सोमू”

                        वो जो इस सफ़र में जरुरी हैं


ये महज एक किताब नहीं है। ये एक सपना था जो अब हकीकत बनकर सामने आया है। कई रातों से, कई रातों तक के सफर में, कई अनकही बातों से निकली ये कहानी, शायद मेरी उड़ान को उड़ान दे। शब्दों को किताब की शक्ल मिलना मतलब मेरे सपने का सच होना है। बेहद आभार हमारे बड़े सर गुप्ता जी का जिन्होंने हिंदी का पहला चांटा लगाया था और कहानी कहने का और लिखने का अंदाज़ उन्हीं से सीखा था।

सर्वप्रथम इस किताब को छपने से पहले ही सराहना देने वाले मेरे गुरु, बड़े भैया पीयूष शास्त्री को धन्यवाद जिन्होंने हमें नोवेल्स पढ़ने की रुचि लगाई और मुझे वाकिफ कराया कि मेरी रुचि साहित्य में है।

ब्रम्हानंद जी, जिनका साथ हमेशा मेरे साथ रहा।

मुझे हॉस्टल में रहते हुए दस साल हो गए हैं। इन दस सालों के सफर में हमेशा मेरे साथ रहे जितेंद्र जैन, नयन जैन, और हमारे चायमित्र शाश्वत जैन।

अमन जैन, सपन जैन, विनीत जैन, देवांश सेठ, पीयूष मंडावरा, पीयूष टड़ा, प्रतीक विदिशा, अनुभव जैन, और पूरी आत्मन क्लास को दिल से शुक्रिया!

अभिषेक जैन, जिसकी बात की शुरुआत इसी किताब के जिक्र से होती थी।

संयम शाह, नितिन जैन, अंकुर जैन, एकांश जैन जिनकी मदद से नॉवेल लिखने का मैं अदना सा साहस कर पाया।

मैं शुक्रगुजार हूँ उन तमाम लोगों का जिन्होंने मेरे इस सफर में मेरा साथ दिया। जिनके बिना मेरी किताब डायरी में ही सिमट कर रह जाती।

ये किताब कोई फिलॉसफी नहीं है ना कोई ज्ञान की बात। बस कुछ देर तक इंटरनेट से दूर रहने का अदना सा बहाना है। इसे पढ़ते वक्त आप रेडियोधर्मी किरणों से शत प्रतिशत दूर रहेंगे ये वादा है आस-पास के किस्सों से उठायी ये कहानी है जो शायद जानी-पहचानी है। आपको जरूर पसंद आएगी।

 

इत्यलम्

"सोमू"



तेरे शहर में

 

5 फ़रवरी, 2020

 

मैं दुबई के लिए उड़ान भर चुका था। मुझे टेकऑफ करने के लिए मेरा पूरा परिवार एयरपोर्ट पर मौजूद था। अपनी आँखों से देखे हुए मेरे कुछ सपनो में से एक सपना पूरा हो रहा था। सपना सिंपल था। “विदेश सिर्फ घूमना है वहाँ रहना नहीं है”। मैं बहुत खुश था मगर थोड़ा नरवसया रहा था क्योंकि पहली बार ऐरोप्लेन में बैठा था। कभी जमीन को इतनी ऊंचाई से नहीं देखा था। मजा इसलिए आ रहा था क्योंकि विंडो वाली शीट मिली थी। हेडफ़ोन मेरे पास में पहले से थे। पहले मैं दुबई नहीं जा रहा था मगर लाइब्रेरी के काम से जाना पड़ रहा था और खुशकिस्मती ये रही कि मेरे मुंह बोले भैया-भाभी दुबई में सालों से अपना डेरा जमाये हैं। वे हमेशा मुझसे कहते थे “यहाँ सुकून है, शांति है, धर्मं है, धन है ब्ला..ब्ला..ब्ला..”

मैंने भी वही किया जो टिपिकल इंडियंस करते हैं और आजकल का ट्रेंड भी है। “कुछ भी कर फेसबुक पर डाल” की नीति अपनाते हुए पॉकेट से अपना बेचलर जीवनसाथी निकाला और सेल्फी मोड में विभिन्न प्रकार के एंगल से फोटो क्लिक की। फिर उसके बाद भी वही किया जो सब करते हैं। फेसबुक अकाउंट पर अवनी को टेग करते हुए कैप्शन में “प्रथम हवाई जहाज यात्रा” टाइप करके पोस्ट कर दी।

“Please Switch Off Your Phone Sir” एयर होस्टेस ने पर्सनली मेरे पास आकर कहा। मैंने भी एक हल्की सी स्माइल पास करते हुए फ़ोन स्विच ऑफ किया। मैंने सुबह-सुबह ही जयपुर से दुबई के लिए उड़ान भरी थी। वीजा मिलना मुश्किल नहीं था। मेरे बगल में विराजमान फिरंगी टाइप आंटी से मैंने बात करनी चाही।

“Hello” मैंने शुरुआत की।

“Hello” उन्होंने मरी सी आवाज में कहा।

“I am Rohit Asati…..I am a writer” मैंने इम्प्रेसन ज़माने के लिए इंग्लिश झाड़ी।

“Good”

“Where are you going?”

“Dubai”

“Why”

उन्होंने मुझे घूरकर देखा। “ज्यादा चेंपो मत” उनका क्लियर जबाब था। मैंने नज़रे झुका लीं। मैं इन तीन घंटो को बर्बाद नहीं करना चाहता था, इसलिए अपनी डायरी निकाली और लिखना शुरू किया।

तीन घंटे तक मेरे हाथ बस लिखे जा रहे थे। जो मेरे मन में आ रहा था बस लिखे जा रहा था। तभी अनाउंस हुआ। फ्लाइट दो मिनिट में दुबई लैंड करने वाली थी।

“कौनसी बुक लिखी है” फ्लाइट लैंड होने के बाद आंटी ने जाते-जाते मुझसे पूछा।

“लिख रहा हूँ अभी पब्लिश नहीं हु” मैंने कहा।

वो मुस्कुराईं। उन्होंने अपने हैंडबेग से एक बुक निकालकर मेरे हाँथ में थमा दी। मैं कुछ बोलता उससे पहले वो जा चुकीं थी। “कमला दास झुनझुन वाला” यही नाम था उस किताब की राइटर का। बुक के पीछे बनी उनकी तस्वीर देखकर मेरे मुंह से निकला “अबे ये तो इंडियन हैं”

मैं चाहता तो भैया-भाभी के घर भी रुक सकता था मगर जब फ्री फ़ोकट में दुबई की नामचीन होटल का न्योता मिला है तो काहे छोड़ा जाए। “मुफ्त का चन्दन घिस मेरे नंदन” वाली कहावत को याद करते हुए अपना लगेज लिए एयरपोर्ट से बाहर आ गया।

“Mr. Rohit Asati” मेरे नाम का प्लग कार्ड लिए एक महानुभाव को मैंने अपनी तरफ आते देखा। मुझे अपने करीब आते देख उन महानुभाव ने अपनी जुबान खोली। “दुबई मा तमारो स्वागत छे”

“धन्यवाद” मैंने मुस्कुराकर कहा। महानुभाव टेक्सी ड्राईवर थे। उन्होंने मेरे लगेज को टेक्सी की डिग्गी में डाला और टेक्सी तेज़ रफ़्तार से अटलांटिस होटल को रवाना हुयी।

 

#######

 

व्यस्त दिन व्यतीत हुआ। मैं भैया-भाभी से मिल चुका था। बहुत जरुरी मीटिंग्स भी अटेंड हो गईं थी। होटल के रूम में पहुँचते ही मेरे डेस्क पर कमलादास की बुक पड़ी थी। मैंने अपनी डायरी को हर जगह खोजा मगर डायरी कहीं नज़र नहीं आई।

मैंने मोबाइल का डेटा ऑन किया। फेसबुक के इनबॉक्स में अवनी के मेसेज पड़े थे। मुझे सिर्फ एक मेसेज सुकून दे रहा था। “तुम्हारी डायरी मेरे पास है”

“तुम्हारे पास कैसे आई मेरी डायरी” मैंने मेसेज टाइप किया।

“मिलकर बताउंगी”

“कब”

“कल…..बोम्बे चोपाटी पर”

“ये कहाँ है”

“लोकेशन भेज रही हूँ मैं” अवनी ने मुझे लोकेशन सेंड की।

मुझे नींद आ रही थी। मैं ऑफलाइन हो गया। अवनी के पास मेरी डायरी थी। पब्लिशर की बेटी है डायरी पढ़े बिना नहीं रहेगी। इसी उधेड़बुन में मेरी नींद लग गई।

 

 


 


कलम क्या-क्या लिखाए

ई-कल्पना पत्रिका में कैसे छपवाएं अपनी कहानियां : मानदेय के साथ प्रोत्साहन भी, पूरी प्रक्रिया जानिए....लिखो और कमाओ

  ई-कल्पना पत्रिका युवा लेखकों के लिए बेहतरीन मंच है। यह पत्रिका ना सिर्फ लेखक की रचना प्रकाशित करती है बल्कि उचित मानदेय भी देती है। जो कलम...